सपना
कहाँ-कहाँ ले आथे सपना।
झुलना घलो झुलाथे सपना।
छीन म ओ ह पहाड़ चढ़ाथे,
नदिया मा तँऊराथे सपना।
जंगल -झाड़ी म किंजारथे,
परी देस ले जा जाथे सपना।
नाता-रिस्ता के घर ले जा के,
सब संग भेंट करथे सपना।
कभू हँसाथे बात-बात मा,
कभू – कभू रोवाथे सपना।
कभू ये हर नइ होवै सच,
बस, हमला भरमाथे सपन।
-बलदाऊ राम साहू